रांची: हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड में 1932 का खतियान लागू कर दिया है। अब सरकार इसे झारखंड विधानसभा में विधेयक के रूप में पेश करेगी। झारखंड कैबिनेट की बैठक में बुधवार को इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। कहा गया कि सरकार 1932 के आधार पर अब स्थानीय होने का नियम परिभाषित करेगी। पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो ने जनता से वादा किया था कि हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद झारखंड में 1932 का खतियान लागू किया जाएगा। सरकार के करीब ढाई साल पूरे होने के बाद हेमंत सोरेन ने इस वादे पर अमल करते हुए कैबिनेट से इसे पास कर दिया है।
झारखंड में लंबे समय से हो रही थी मांग
मालूम हो कि लंबे समय से झारखंड में लोग इसे लागू करने की मांग कर रहे थे। झामुमो के अलावा भाजपा के सहयोगी दल आजसू पार्टी के प्रमुख सुदेश महतो भी कई बार हेमंत सोरेन सरकार से इसे लागू करने की मांग कर चुके हैं। झामुमो के ज्यादातर मंत्री और विधायक बार बार 1932 का खतियान लागू करने की मांग कर रहे थे। झामुमो का मानना है कि इस खतियान के आधार पर स्थानीयता परिभाषित होने से झारखंड के आदिवासियों को काफी फायदा होगा। उनके अधिकारों की रक्षा होगी। सत्ता और संसाधनों में उनकी भागीदारी बढ़ जाएगी।
45 प्रस्तावों को दी गई मंजूरी
बता दें कि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में कैबिनेट ने मंत्रिमंडल की बैठक में कुल 45 प्रस्ताव को मंजूरी दी. ओबीसी को झारखंड में 27 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले पर भी मुहर लगाई गई है. झारखंड पदों एवं सेवाओं के लिए उपयोग आरक्षण संशोधित विधेयक 2022 की मंजूरी दी गई है. ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा, अनुसूचित जाति को 12 पर्सेंट और अनुसूचित जनजाति को 28 प्रतिशत, ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा.
जानें स्थानीयता कानून लागू करने का नियम
अब इस विधेयक को विधानसभा में पारित कराने के बाद नौंवी अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा. सरकार अब इस विधेयक को पारित कराने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की तैयारी में जुट गई है. सूत्रों के अनुसार अगले हफ्ते विशेष सत्र आहूत करने की तैयारी की जा रही है. इस विशेष सत्र में 1932 खतियान आधारित स्थानीयता नीति संबंधित विधेयक और एसटी-एससी, ओबीसी का आरक्षण बढ़ाने संबंधित विधेयक को पारित कराया जाएगा. विधानसभा से पारित कराने के बाद दोनों विधेयकों को राज्यपाल के माध्यम से केंद्र को भेजा जाएगा.
बीजोपी ने 1985 को माना था कटऑफ
बता दें कि, इससे पहले बीजेपी की रघुवर सरकार ने 2016 में स्थानीयता नीति तय करने के लिए 1985 को कटऑफ डेट माना था. इसे ही बीजेपी सरकार ने लागू किया था. अभी ये नीति राज्य में लागू है. हेमंत सोरेन सरकार के इस फैसले का झारखंड में विरोध भी होने की संभावना है. यहां बड़ी संख्या में यूपी और बिहार के लोग वर्षों से रहते आ रहे हैं. 1932 खतियान की वजह से यूपी और बिहार से आकर बसे लोग स्थानीयता की पात्रता खो भी सकते हैं.
सियासी तौर पर मिल सकता है JMM को लाभ
वैसे देखा जाए तो झारखंड में कई ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने अपने काम से झारखंड का नाम रौशन किया है. जैसे महेंद्र सिंह धोनी, तीरदांज दीपिका कुमारी. कई ऐसे राजनेता भी हो सकते हैं जिनके पास 1932 का खतियान ना हो. यहां कई लोग जो बरसों से रहते आ रहे हैं, ऐसे में लोगों को विरोधी दल गोलबंद कर झारखंड की राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि, इस विरोध से आदिवासी समुदायों की गोलबंदी और मजबूत होने की संभावना है. इसका फायदा झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिल सकता है.